आर्य और काली छड़ी का रहस्य-28
अध्याय-9
रहस्यमई किला
भाग-3
★★★
तीनों उस मूर्ति के हटाने से बनी जगह से दीवार के दूसरी ओर चले गए जहां एक ओर गलियारा उनके सामने था। मगर यह गलियारा अलग तरह का था। यहां दीवारों में कुछ डरावनी जानवरों की खोपड़ियां गढ़ी हुई थी जिनके मुंह खुले हुए थे।
तीनों ने आगे बढ़ना शुरू किया। हिना आगे थी तो पहला कदम उसने रखा। उसके कदम रखते ही वहां मौजूद जानवरों के मुंह से आग निकलने लगी। हिना ने तुरंत अपने हाथों को नीली रोशनी से चमकाकर दीवार का निर्माण कवच के तौर पर कर लिया। सारी की सारी आग कवच पर पड़ गई थी जिससे उसे कोई नुकसान नहीं हुआ।
आयुध मुंह मरोड़ता हुआ बोला “ऊह़... इस तरह की चीजें तो हर किले में होती है। इन लोगों को पता नहीं क्या मेरी बहन को नीला जादू आता है। उसके लिए आग कोई मायने नहीं रखती।”
आर्य और हिना दोनों ही यह सुन कर मुस्कुराए। हिना ने कवच के साथ ही आगे बढ़ना शुरू किया। वही आर्य और आयुध हिना के पीछे पीछे चलने लगे। जानवरों से अभी भी आग निकल रही थी मगर किसी पर भी उसका असर नहीं हो रहा था।
जल्द ही तीनों ने आग वाले इस गलियारे को पार कर लिया। आग वाले गलियारे को पार करने के बाद हिना बोली “आखिरकार हमने मौत के गलियारे को पार कर ही लिया। अब हम मौत के गलियारे को पार कर किले के चौथे पड़ाव की ओर जाएंगे। मौत का गलियारा किले का तीसरा पड़ाव था।”
आयुध ने कहा “चौथा पड़ाव तो अंधेरी और खूंखार आत्माओं का है ना। इसे कैसे पार किया जाएगा।”
“तुम फिकर मत करो..” हीना ने कहा “हमारे पास आचार्य वर्धन की छड़ है... उसकी रोशनी की वजह से अंधेरी खूंखार आत्माए हमें नुकसान नहीं पहुंचा पाएगी।”
जल्द ही सब आगे बढ़े तो वह लोग एक ऐसी जगह पर खड़े थे जहां सिवाय अंधेरे की और कुछ नहीं था। हालांकि उन्होंने इससे पीछे भी ऐसी जगह देखी थी जहां काफी अंधेरा था। मगर फिर भी अंधेरे के अलावा कुछ ना कुछ दिख जाता था। यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा था।
आर्य ने हिना से रोशनी वाली छड़ ली और उसे इधर-उधर घूमाया। ऐसा करने के बावजूद भी उन्हें शिवाय नीचे के फर्श के और कुछ नहीं दिखा।
हिना ने अपने हाथों को नीली रोशनी से चमकाया और उसे ऊपर की ओर फेंका जिससे एक ही झटके में बहुत तेज रोशनी हुई। उसके ऐसा करते ही अंधकारमय वातावरण रोशनी से भर गया, पर साथ में खूंखार आत्माओं से भी। अचानक सैकड़ों की संख्या में काले अंधेरे की तरह दिखने वाली परछाइयां हिना की नीली रोशनी पर टूट पड़ी।
आयुध और हिना यह देखते ही आर्य के पास हो गए और उसके हाथों को पकड़ लिया। उन दोनों को ही डर लगा था। डर तो आर्य को भी लगा था मगर उसके हाथ में आचार्य वर्धन की छड़ थी।
हिना की नीली रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगी, और जब रोशनी कम हुई तो सभी धुएं वाली परछाइयां तीनों की तरफ आने लगी। उन्हें अपनी ओर आता देख आयुध और हिना की आंखें बंद हो गई। वही जैसे ही परछाइयां पास आई आर्य ने छड़ ऊपर हवा में कर दी। सभी आने वाली परछाइयां छड़ के पास आते ही जलने लगी, और उन्होंने यू-टर्न लेते हुए अपना रास्ता बदल दिया। आयुध और हिना की आंखें खुली तो उन्होंने भी अपने सामने जलती हुई परछाइयों को देखा।
हिना ने कहा “खूंखार आत्माओं पर आचार्य वर्धन की रोशनी कहर बनकर बरस रही है। मतलब इस रोशनी के आसपास हम लोग सुरक्षित हैं।”
आयुध ने आर्य के हाथ को और कस कर पकड़ लिया “मेरे दोस्त, तुम अब यहां हमसे दूर मत होना। पास पास रहकर ही आगे बढ़ना।”
आर्य ने बात को समझा और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। जैसे जैसे वह बढ़ रहा था वैसे वैसे ही आर्य और हिना बढने लगे। दोनों ने हीं आर्य को छोड़ा नहीं था। कुछ ही देर में सब उस अंधेरी जगह के बीचो-बीच आ गए। वहां आर्य ने रोशनी को थोड़ा सा ऊपर किया तो उसे नरक की खूंखार आत्माएं सैकड़ों की बजाए हजारों में दिखी।
सब की सब खूंखार आत्माएं छत पर एक दूसरे से टकराते हुए उन्हीं तीनों को घूर रही थी
इस मौके पर आयुध ने हिना का मजाक सा करते हुए कहा “मुझे लगता था सिर्फ मेरे ही बहन इस दुनिया में डरावनी है। आज पता चला यहां इस दुनिया में इससे भी डरावनी और काफ़ी सारी चीजें हैं।”
दोनों ने ही आगे चलना जारी रखा। बीच-बीच में अंधेरी आत्माएं उनकी और आई थी मगर उनके पास आने पर वही हुआ जो पहले हुआ था। अंधेरी परछाइयां पास आते ही जल रही थी।
तभी तीनों की नजर सामने गई। वहां उन्हें दरवाजे जैसी चीज दिखाई दे रही थी। उसे देखते ही हिना ने कहा “हमें दरवाजा मिल गया।”
आयुध ने कहा “भगवान का लाख-लाख शुक्र है जो हमें यहां इस खतरनाक जगह पर ज्यादा नहीं भटकना पड़ा। इस जगह से जितनी जल्दी निकला जाए उतना ही बेहतर।”
आयुध ने जल्दबाजी में एक कदम आगे बढ़ाया तो सारी अंधेरी आत्माएं उसके मुंह के पास आ गई। वह अचार्य वर्धन की छड़ के रोशनी वाले घेरे से थोड़ा सा आगे चला गया था।
आखरी समय पर आर्य ने छड़ को उसके मुंह के पास कर दिया था। इससे एक ऐसा दृश्य पैदा हुआ जिसमें काफी सारी परछाइयां ठीक आयुध के मुंह के सामने जल रही थी। जब चीजें फिर से सामान्य हुई तो हिना ने कहा।
“मेरे भाई माना कि तुम्हें इस दुनिया से खास लगाव नहीं, लेकिन अगर मरना है तो कम से कम अपने लिए कोई अच्छी जगह तो ढूंढो। यहां मरोगे तो हम तुम्हारा अस्ति विसर्जन भी नहीं कर पाएंगे।” कुछ देर पहले आयुध ने हीना पर टोटं मारा था। जबकि अबकी बार मौके का फायदा उठाते हुए हिना ने उस पर टोंट मार दिया। तीनों ही इसके बाद सुरक्षित दरवाजे की तरफ चले गए थे। दरवाजे की तरफ चलने के बाद उन्होंने दरवाजा पार भी कर लिया।
★★★
तीनों ही किले के चार पड़ावों को पार कर चुके थे। चारों ही पड़ाव को पार करने के बाद वह लोग जिस जगह पर आए थे वह कोई खुला कमरा था। हालांकि किले का हिस्सा होने की वजह से यहां भी चटानी दीवारें और काफी सारे चट्टानों की मौजूदगी थी।
हिना ने अपने आसपास की जगह को देखते हुए कहा “किले के चार पड़ावों को पार करने के बाद हमें आखिर में उस दीवार के पास पहुंचना चाहिए था जिसके पीछे अंधेरी परछाइयों को कैद करके रखा गया है। मगर यह कौन सी जगह है मुझे समझ में नहीं आ रहा। दीवार को तो इस तरह का नहीं होना चाहिए। उसने अंधेरी परछाइयों को कैद करके रखा है तो वह थोड़ी मजबूत और ताकतवर होनी चाहिए।”
“हो सकता है वह दीवार आगे हो।” आर्य ने अंदाजा लगाते हुए कहा “क्योंकि हम अभी किले के आखिरी हिस्से तक नहीं पहुंचे हैं।” उसने सामने की ओर संकेत किया जहां एक रास्ता और आगे जा रहा था। “अभी भी हमारे सामने रास्ता है।”
“हां यह हो सकता है।” हिना बोली “लेकिन अगर ऐसा है तो हमें यहां थोड़ी सावधानी और रखनी होगी। गद्दारी करने वाले आचार्य यहीं कहीं होंगे। वह दीवार के पास भी हो सकते हैं। सावधानी रखेंगे तो उनसे भी बच कर रहेंगे।”
आयुध ने हिना के चोगे के दाएं और बनी जेब में हाथ डाला और उससे कैमरा बाहर निकालते हुए कहा “मुझे कैमरा मेरे हाथ में लेना चाहिए। अगर सावधानी की बात हो रही है तो मैं तुम दोनों को कह दूं, मैंने इसके फ्लैशलाइट को ऑफ कर दिया है और साउंड भी बंद है। ऐसे में मैं जो भी पिक्चर लूंगा वह बिल्कुल सावधानी से आएगी।”
सबने एक एक बार के लिए एक दूसरे के चेहरों की तरफ देखा। इसके बाद आंखें झपकाई और आखरी वाले रास्ते की ओर जाने लगे।
मगर अभी तीनों थोड़ा सा ही आगे चले थे कि पीछे से लाल रंग की रोशनी वाले तीन गोले आए और तीनों से बारी-बारी टकराए। उन गोलों के तीनों से बारी-बारी टकराने के बाद तीनो के तीनो वहां लाल रंग की मूर्ति के रूप में बदल गए।
तीनों ही गोले वहां उस जगह में अंधेरे से निकल कर आए थे। जल्द ही जिस जगह से गोले निकल कर आए थे, वहीं से किसी के चलने की आवाज आने लगी। शुरुआत में चलने वाली आवाज के पेर दिखाई दिए जहां उनका सफेद चोगा भी दिखाई दे रहा था। धीरे धीरे छवि और स्पष्ट हुई और उनकी पूरी आकृति नजर आई। वह आचार्य ज्ञरक थे जिनके हाथ में लाल और काली रोशनी से चमकने वाली छड़ थी। उन्होंने आते ही तीनों के चेहरों को देखा और हैरान होते हुए कहा “तुम तीनों.... वह भी यहां..!!”
★★★
दीपांशी ठाकुर
20-Dec-2021 11:18 PM
Ye chhad bade Kamal ki h
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